Monday, February 22, 2010

वक़्त नहीं है...

हर ख़ुशी है लोगों के दामन में ,
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं ...
दिन रात दौड़ती दुनिया में ,
ज़िन्दगी के लिय ही वक़्त नहीं ।

माँ की लोरी का एहसास तो है ,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं ।
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके ,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं ।

सारे नाम मोबाइल में हैं ,
पर दोस्ती के लिए वक़्त नहीं ।
गैरों की क्या बात करें ,
जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं ।

आँखों में है नींद बड़ी ,
पर सोने का वक़्त नहीं ।
दिल है गमो से भरा हुआ ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं

पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े ,
की थकने का भी वक़्त नहीं ।
पराये एहसासों की क्या कद्र करें ,
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं ।

तू ही बता ऐ ज़िन्दगी ,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा ,
की हर पल मरने वालों को ,
जीने के लिए भी वक़्त नहीं ।

No comments:

Post a Comment